कीव बनाम क्रेमलिन: दुनिया की नज़र में सबसे बड़ा भू-राजनीतिक संघर्ष
प्रस्तावना
रूस-यूक्रेन युद्ध : रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध 21वीं सदी का सबसे बड़ा और जटिल संघर्ष बन चुका है। यह सिर्फ दो देशों के बीच की जंग नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, ऊर्जा सुरक्षा, और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की परीक्षा बन चुकी है। फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ यह युद्ध अब तक हज़ारों जानें ले चुका है और लाखों लोगों को बेघर कर चुका है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण, इसका इतिहास, इसके प्रभाव और वर्तमान स्थिति की विस्तृत जानकारी।
इतिहास की पृष्ठभूमि
रूस और यूक्रेन के संबंध सदियों पुराने हैं। कभी दोनों देश सोवियत संघ (USSR) का हिस्सा थे। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन स्वतंत्र राष्ट्र बना, लेकिन रूस की नज़र हमेशा इस पर बनी रही।
क्रीमिया विवाद (2014)
2014 में रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट आ गई। पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन रूस ने पीछे हटने से इनकार कर दिया।
रूस-यूक्रेन युद्ध के मुख्य कारण
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नाटो (NATO) विस्तार
रूस-यूक्रेन युद्ध : रूस को डर है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो गया, तो पश्चिमी सैन्य ताकतें उसकी सीमा तक पहुंच जाएंगी। यही वजह है कि रूस यूक्रेन की पश्चिमी झुकाव वाली नीति से असहज है। -
भौगोलिक रणनीति
रूस-यूक्रेन युद्ध : यूक्रेन यूरोप और रूस के बीच एक भू-राजनीतिक बफर ज़ोन है। रूस नहीं चाहता कि वह क्षेत्र पश्चिमी प्रभाव में आए। -
रूसी पहचान और इतिहास
रूस-यूक्रेन युद्ध : पुतिन ने कई बार कहा है कि रूस और यूक्रेन “एक ही लोग” हैं। रूस, यूक्रेन की स्वतंत्रता को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार नहीं करता। -
डोनबास क्षेत्र में संघर्ष
रूस-यूक्रेन युद्ध : यूक्रेन के पूर्वी क्षेत्रों — डोनेट्स्क और लुहान्स्क — में रूसी समर्थित विद्रोही लंबे समय से सक्रिय हैं। रूस ने इन क्षेत्रों को स्वतंत्र मान्यता दी और वहां की “सुरक्षा” के नाम पर युद्ध शुरू कर दिया।
युद्ध की शुरुआत (फरवरी 2022)
24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण सैन्य आक्रमण शुरू किया (रूस-यूक्रेन युद्ध) । कीव, खारकीव, मरियुपोल जैसे शहरों पर मिसाइल हमले किए गए। यूक्रेनी सेना और नागरिकों ने जबरदस्त प्रतिरोध किया।
रूस-यूक्रेन युद्ध वैश्विक प्रभाव
1. तेल और गैस की कीमतें बढ़ीं
रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस निर्यातकों में से एक है। युद्ध के कारण ऊर्जा आपूर्ति बाधित हुई और वैश्विक बाज़ार में कीमतें आसमान छूने लगीं।
2. खाद्य संकट
यूक्रेन “यूरोप का ब्रेडबास्केट” माना जाता है। गेहूं, मकई और सूरजमुखी तेल का बड़ा हिस्सा वहीं से आता है। युद्ध से आपूर्ति बाधित हुई, जिससे खासकर अफ्रीकी और एशियाई देशों में खाद्य संकट पैदा हुआ।
3. शरणार्थी संकट
लाखों यूक्रेनी नागरिकों ने पड़ोसी देशों में शरण ली। यह यूरोप के लिए मानवीय और सामाजिक चुनौती बन गया।
4. रक्षा बजट में बढ़ोतरी
युद्ध के डर से नाटो देशों सहित कई देशों ने अपने रक्षा बजट में भारी इज़ाफा किया।
भारत की भूमिका और स्थिति
भारत ने इस युद्ध में अब तक तटस्थ रुख अपनाया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत ने युद्ध के विरोध में पेश कई प्रस्तावों पर वोटिंग से परहेज़ किया। भारत का फोकस रहा है अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी और कूटनीतिक समाधान।
भारत ने दोनों पक्षों से शांति की अपील की है और “संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता” के समर्थन की बात कही है।
युद्ध की वर्तमान स्थिति (2025 तक)
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यूक्रेन ने पश्चिमी देशों की मदद से कुछ क्षेत्रों को वापस जीता है, लेकिन रूस अब भी डोनबास और क्रीमिया जैसे इलाकों पर नियंत्रण बनाए हुए है।
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अमेरिका और यूरोपीय संघ लगातार यूक्रेन को सैन्य सहायता दे रहे हैं।
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रूस की अर्थव्यवस्था पर लगाए गए प्रतिबंधों का असर दिख रहा है, लेकिन उसने चीन और अन्य देशों से व्यापार को बढ़ाकर नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की है।
भविष्य की संभावनाएँ
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शांति समझौता – अब भी कई देश मध्यस्थता की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जब तक दोनों पक्षों के हितों में तालमेल नहीं बैठता, यह मुश्किल है।
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स्थायी युद्ध – अगर युद्ध चलता रहा, तो यह लंबे समय तक यूरोप और एशिया की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
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नवीन वैश्विक गठबंधन – इस युद्ध ने अमेरिका-यूरोप बनाम रूस-चीन के बीच नया ध्रुवीकरण ला दिया है।
निष्कर्ष
रूस-यूक्रेन युद्ध दो देशों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व के लिए चेतावनी है कि कैसे भू-राजनीतिक संघर्ष मानवीय त्रासदी में बदल सकते हैं। यह ज़रूरी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिलकर इस संघर्ष को समाप्त करने की कोशिश करे।
शांति ही समाधान है।